Kabir Prakat Diwas
काल ब्रह्म के लोक में चार मुक्ति मानी जाती हैं, जिनको प्राप्त करके साधक अपने
को धन्य मानता है। परंतु वे स्थाई नहीं हैं। कुछ समय उपरांत पुण्य समाप्त होते
ही फिर 84 लाख प्रकार की योनियों में कष्ट उठाता है। परंतु उस सत्यलोक में
चारों मुक्ति वाला सुख सदा बना रहेगा। माया आपकी नौकरानी बनकर रहेगी।
संत गरीबदास जी ने बताया है कि अमर लोक में जाने के पश्चात् प्राणी
निर्भय हो जाता है और उस सनातन परम धाम में वह अविनाशी राम अर्थात्
परमेश्वर मिलेगा। इसलिए पूर्ण मोक्ष के लिए शास्त्रानुकूल भक्ति करनी चाहिए
जिससे उस भगवान तक जाया जा सकता है।
उपरोक्त वाणी तथा पूर्वोक्त विवरण से स्पष्ट हुआ कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु
जी तथा शिव जी और इनके पिता काल ब्रह्म अर्थात् क्षर पुरूष व अक्षर पुरूष सर्व
राम अर्थात् प्रभु नाशवान हैं। केवल परम अक्षर ब्रह्म ही अविनाशी राम अर्थात् प्रभु
है। इस परमेश्वर की भक्ति से ही परमशांति तथा सनातन परम धाम अर्थात् पूर्ण
मोक्ष प्राप्त होगा जहाँ पर चार मुक्ति का सुख सदा रहेगा। माया अर्थात् सर्व
सुख-सुविधाऐं साधक के नौकर की तरह हाजिर रहती हैं।
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