कबीर प्रकट दिवस

कलयुग में ज्येष्ठ शुदि पूर्णमासी संवत् 1455 (सन् 1398) को कबीर परमेश्वर
सत्यलोक से चलकर आए तथा काशी शहर के लहर तारा नामक सरोवर में कमल
के फूल पर शिशु रूप में विराजमान हुए। वहां से नीरू तथा नीमा जो जुलाहा
(धाणक) दम्पति थे, उन्हें उठा लाए। शिशु रूपधारी परमेश्वर कविर्देव (कबीर
परमेश्वर) ने 25 दिन तक कुछ भी आहार नहीं किया। नीरू तथा नीमा उसी जन्म
में ब्राह्मण थे। श्री शिव जी के पुजारी थे। मुसलमानों द्वारा बलपूर्वक मुसलमान
बनाए जाने के कारण जुलाहे का कार्य करके निर्वाह करते थे। बच्चे की नाजुक
हालत देखकर नीमा ने अपने ईष्ट शिव जी को याद किया। शिव जी साधु वेश
में वहां आए तथा बालक रूप में विराजमान कबीर परमेश्वर को देखा। बालक रूप
में कबीर साहेब जी ने कहा हे शिव जी इन्हें कहो एक कुँवारी गाय लाऐं वह आप
के आशीर्वाद से दूध देगी। ऐसा ही किया गया। कबीर परमेश्वर के आदेशानुसार
भगवान शिव जी ने कुँवारी गाय की कमर पर थपकी लगाई। उसी समय बछिया
के थनों से दूध की धार बहने लगी। एक कोरा मिट्टी का छोटा घड़ा नीचे रखा।
पात्रा भर जाने पर दूध बन्द हो गया। फिर प्रतिदिन पात्रा थनों के नीचे करते ही
बछिया के थनों से दूध निकलता। उसको परमेश्वर कबीर जी पीया करते थे।
जुलाहे के घर परवरिश होने के कारण बड़े होकर परमेश्वर कबीर जी भी जुलाहे
का कार्य करने लगे तथा अपनी अच्छी आत्माओं को मिले, उनको तत्वज्ञान
समझाया तथा स्वयं भी तत्वज्ञान प्रचार करके अधर्म का नाश किया तथा जिन-2
को परमेश्वर जिन्दा महात्मा के रूप में मिले, उनको सच्चखण्ड (सत्यलोक) में ले
गए तथा फिर वापिस छोड़ा, उनको आध्यात्मिक ज्ञान दिया तथा अपने से परिचित
कराया। वे उस परमेश्वर (सत्य पुरूष) के अवतार थे। उन्होंने भी परमेश्वर से
प्राप्त ज्ञान के आधार से अधर्म का नाश किया। वे अवतार कौन-2 हुऐ हैं।
(1ण्) आदरणीय धर्मदास जी (2ण्) आदरणीय मलुकदास जी (3ण्) आदरणीय
नानक देव साहेब जी (सिख धर्म के प्रवर्तक)(4ण्) आदरणीय दादू साहेब जी
(5ण्) आदरणीय गरीबदास साहेब जी गांव छुड़ानी जि. झज्जर (हरियाणा) वाले
तथा (6ण्) आदरणीय घीसा दास साहेब जी गांव खेखड़ा जि. मेरठ (उत्तर प्रदेश)
वाले ये उपरोक्त सर्व अवतार परम अक्षर ब्रह्म (सत्य पुरूष) के थे। अपना कार्य
करके चले गए। अधर्म का नाश किया। जिस कारण से जनता में बहुत समय तक
बुराई नहीं समाई। वर्तमान में सन्तों की कमी नहीं परन्तु शांति का नाम नहीं,
कारण यह है कि इन संतों की साधना शास्त्रों के विरूद्ध है। जिस कारण से समाज
में अधर्म बढ़ता जा रहा है। इन पंथों और सन्तों को सैकड़ों वर्ष हो गए ज्ञान प्रचार
करते हुए परन्तु अधर्म बढ़ता ही जा रहा है।

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